श्लोक:
सर्व ज्ञानक्रियाशक्तिं सर्वयोगेश्वरम् प्रभुम् ।
सर्व वैद्यविदं विष्णुम् प्रभविष्णुमुपास्महे ।।५।।
गीति ।।३।।
रागं - नाटै तालं - झंपै
प ।। जय जय रमानाथ ।
अनु ।। जय जय धरानाथ ।
जय जय वराहपुर श्री वेङ्कटेश । जय जय ।
निगमगोचर नित्य निर्मलानन्दघन
विगलितमहामोह विमलविज्ञान हरे
खगयानसञ्चार खण्डितासुरनिकर
सकलगुणसम्पन्न सत्यपरिपूर्ण ।। जय जय ।।१।।
मधुसूदनानन्त माया कृतभुवन
विधुदिवाकरनयन वेदान्त भवन हरे
विधिमुखसुरेन्द्रनुत विपुलकल्याणयुत
विमलयोगिध्येय विविधमुनिगेय ।। जय जय ।।२।।
मुररकसंहार मूढमतिजनदूर
परिजनशिवङ्कर परावरशरीर - हरे
निरवधिककारुण्य निखिललोकशरण्य
सरसनारायणतीर्थ सद्गुरुवरेण्य ।। जय जय ।।३।।
सर्व ज्ञानक्रियाशक्तिं सर्वयोगेश्वरम् प्रभुम् ।
सर्व वैद्यविदं विष्णुम् प्रभविष्णुमुपास्महे ।।५।।
गीति ।।३।।
रागं - नाटै तालं - झंपै
प ।। जय जय रमानाथ ।
अनु ।। जय जय धरानाथ ।
जय जय वराहपुर श्री वेङ्कटेश । जय जय ।
निगमगोचर नित्य निर्मलानन्दघन
विगलितमहामोह विमलविज्ञान हरे
खगयानसञ्चार खण्डितासुरनिकर
सकलगुणसम्पन्न सत्यपरिपूर्ण ।। जय जय ।।१।।
मधुसूदनानन्त माया कृतभुवन
विधुदिवाकरनयन वेदान्त भवन हरे
विधिमुखसुरेन्द्रनुत विपुलकल्याणयुत
विमलयोगिध्येय विविधमुनिगेय ।। जय जय ।।२।।
मुररकसंहार मूढमतिजनदूर
परिजनशिवङ्कर परावरशरीर - हरे
निरवधिककारुण्य निखिललोकशरण्य
सरसनारायणतीर्थ सद्गुरुवरेण्य ।। जय जय ।।३।।
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