कृपा समुद्रं सुमुखं त्रिनेत्रम्
जटाधरम् पार्वती वाम भागम्
सदा शिवं रुद्रम् अनन्त रूपम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।१।।
वाचामतीतम् फणी भूषणाङगम्
गणेश तातम् धनदस्य मित्रम्
कन्दर्प नाशम् कमलोत्पलाक्षम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।२।।
रमेश वन्द्यम् रजताद्रिनाथम्
श्री वामदेवम् भव दु:ख नाशम्
रक्षाकरम् राक्षस पीडीतानाम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।३।।
देवादिदेवं जगदेकनाथम्
देवेश वन्द्यम् शशि गण्ड चूडम्
गौरी समेतम् कृत विघ्न दक्षं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।४।।
वेदान्तवेद्यम् सुरवैरिविघ्नम्
शुभप्रदम् भक्तिमदन्तराणाम्
कालान्तकम् श्रीकरुणाकटाक्षम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।५।।
हेमाद्रिचापम् त्रिगुणात्मभावम्
गुहात्मजम् व्याघ्रपुरीशमाद्यं
श्मशानवासम् वृषवाहनस्थम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।६।।
आध्यन्त शून्यम् त्रिपुरारिमीशम्
नन्दीशमुख्यस्तुतवैभवाढ्यम्
समस्त देवै: परिपूजिताङ्घ्रिम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।७।।
तमेव भान्तम् ह्यनुभाति सर्वम्
अनेकरूपं परमार्थमेकम्
पिनाकपाणिम् भवनाशहेतुम्
कन्दर्पगात्रं कमलेशमित्रं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ ११ ॥
विशालनेत्रं परिपूर्णगात्रं
गौरी कलत्रं हरिदम्बरेशम्
कुबेरमित्रं जगतः पवित्रं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १२ ॥
कल्याणमूर्तिं कनकाद्रिचापं
कान्ता समाक्रान्त निजार्द्धदेहम्
कपर्दिनं कामरिपुं पुरारिं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १३ ॥
कल्पान्त कालाहितचण्डनृत्तं
समस्त वेदान्त वचोनि गूढम्
अयुग्मनेत्रं गिरिजासहायं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १४ ॥
दिगंबरं शङ्खसिताल्पहासं
कपालिनं शूलिनम् अप्रमेयम्
नागात्मजम् वक्त्रपयोज सूर्यं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १५ ॥
वैय्याघ्रचर्मांबरमुग्रमीशं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १६ ॥
चिदम्बरस्य स्तवनं पठेद्य:
प्रदोषकालेषु पुमान् स धन्यः ।
भोगना शेषाननुभूय भूयः
सायुज्यमप्येति चिदम्बरस्य ॥ १७ ॥
जटाधरम् पार्वती वाम भागम्
सदा शिवं रुद्रम् अनन्त रूपम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।१।।
वाचामतीतम् फणी भूषणाङगम्
गणेश तातम् धनदस्य मित्रम्
कन्दर्प नाशम् कमलोत्पलाक्षम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।२।।
रमेश वन्द्यम् रजताद्रिनाथम्
श्री वामदेवम् भव दु:ख नाशम्
रक्षाकरम् राक्षस पीडीतानाम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।३।।
देवादिदेवं जगदेकनाथम्
देवेश वन्द्यम् शशि गण्ड चूडम्
गौरी समेतम् कृत विघ्न दक्षं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।४।।
वेदान्तवेद्यम् सुरवैरिविघ्नम्
शुभप्रदम् भक्तिमदन्तराणाम्
कालान्तकम् श्रीकरुणाकटाक्षम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।५।।
हेमाद्रिचापम् त्रिगुणात्मभावम्
गुहात्मजम् व्याघ्रपुरीशमाद्यं
श्मशानवासम् वृषवाहनस्थम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।६।।
आध्यन्त शून्यम् त्रिपुरारिमीशम्
नन्दीशमुख्यस्तुतवैभवाढ्यम्
समस्त देवै: परिपूजिताङ्घ्रिम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।७।।
तमेव भान्तम् ह्यनुभाति सर्वम्
अनेकरूपं परमार्थमेकम्
पिनाकपाणिम् भवनाशहेतुम्
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।८।।
विश्वेश्वरं नित्यमनन्त माद्यम्
त्रिलोचनम् चन्द्र कलावतंसं
पतिं पशूनाम् हृदि सन्निविष्टं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।९।।
विश्वाधिकम् विष्णुमुखैरूपास्यं
त्रिलोचनम् पञ्चमुखं प्रसन्नम्
उमापतिं पापहरम् प्रशान्तं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।१०।।
कर्पूरगात्रं कमनीयनेत्रं
कंसारिमित्रं कमलेन्दुवक्त्रम् विश्वेश्वरं नित्यमनन्त माद्यम्
त्रिलोचनम् चन्द्र कलावतंसं
पतिं पशूनाम् हृदि सन्निविष्टं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।९।।
विश्वाधिकम् विष्णुमुखैरूपास्यं
त्रिलोचनम् पञ्चमुखं प्रसन्नम्
उमापतिं पापहरम् प्रशान्तं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ।।१०।।
कर्पूरगात्रं कमनीयनेत्रं
कन्दर्पगात्रं कमलेशमित्रं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ ११ ॥
विशालनेत्रं परिपूर्णगात्रं
गौरी कलत्रं हरिदम्बरेशम्
कुबेरमित्रं जगतः पवित्रं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १२ ॥
कल्याणमूर्तिं कनकाद्रिचापं
कान्ता समाक्रान्त निजार्द्धदेहम्
कपर्दिनं कामरिपुं पुरारिं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १३ ॥
कल्पान्त कालाहितचण्डनृत्तं
समस्त वेदान्त वचोनि गूढम्
अयुग्मनेत्रं गिरिजासहायं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १४ ॥
दिगंबरं शङ्खसिताल्पहासं
कपालिनं शूलिनम् अप्रमेयम्
नागात्मजम् वक्त्रपयोज सूर्यं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १५ ॥
सदाशिवं सत्पुरुषैर नेकैः
सदार्चितं सामशिरस्सुगीतम् वैय्याघ्रचर्मांबरमुग्रमीशं
चिदम्बरेशम् हृदि भावयामि ॥ १६ ॥
चिदम्बरस्य स्तवनं पठेद्य:
प्रदोषकालेषु पुमान् स धन्यः ।
भोगना शेषाननुभूय भूयः
सायुज्यमप्येति चिदम्बरस्य ॥ १७ ॥