श्री राजराजेश्वरी स्तोत्रम्
कल्याणा यत पूर्ण चन्द्र वदनाम् प्राणेश्वरानन्दिनीम्
पूर्णा पूर्णतराम् परेष महीशीम् पूर्णमृतास्वादिनीम्
संपूर्णाम् परमोत्तमांमृत कलाम् विध्यावतिम् भारतीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१।।
एकारादि समस्त वर्ण विविधाकारैक चित्रूपीणीम्
चैतन्यात्मक चक्र राज निलयाम् चक्रांत संचारिणीम्
भावा भाव विभाविनीम् भव पराम् सद्भक्ति चिन्तामणीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।२।।
ईशा धृक् पर योग बृंद विविताम् स्वानंद भूताम् पराम्
पश्यन्तिं तनु मध्यमाम् विलसिनीम् श्री वैखरी रूपिणीम्
आत्मानात्म विचारिणीम् विवरगाम् विध्याम् त्रिबीजात्मिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।३।।
लक्ष्यालक्ष्य निरीक्षणाम् निरुपमाम् रुद्राक्ष माला धराम्
त्र्यक्षार्थ कृति दक्ष वंश कलिकाम् दीर्घाक्षी दीर्घ स्वराम्
भद्राम भद्र वर प्रदाम् भगवतीम् भद्रेश्वरीम् मुद्रीणीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।४।।
ह्रीम् बीजागत नाद बिंदु भरिताम् ओँकारनादात्मिकाम्
ब्रह्मानन्द घनोधरीम् गुणवतीम् ज्ञानेश्वरीम् ज्ञानदाम्
इच्छाज्ञान कृतीम् महीम् गतवतीम् गंधर्व संसेविताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।५।।
हर्षोन्मत्त सुवर्ण पात्र भरिताम् पीनोन्ताम् घोर्निताम्
हूंकार प्रिय शब्द जाल निरताम् सारस्वतोल्लासिनीम्
सारासार विचार चारु चरिताम् वर्णाश्रमा कारिणीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।६।।
सर्वेशांग विहारिणीम् सकरुणाम् सन्नाधिनीम् नादीनीम्
संयोग प्रिय रूपिणीम् प्रियवतीम् प्रीताम् प्रतापोन्नताम्
सर्वांतर्गत शालिनीम् शिव तनु संदीपिनीम् दीपिनीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।७।।
कर्मा कर्म विवर्जिताम् कुलवतीम् कर्म प्रदां कौलिनीम्
कारुण्याम् भुवि सर्व काम निरताम् सिंधु प्रियोल्लास्सिनीम्
पञ्च ब्रह्म सनातना सनगताम् गेयाम् सुयोगान्विताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।८।।
हस्त्युतकुम्भ निभस्तनद्वितयथ: पीन्नोन तादानभान्
हाराध्याभरणाम् नरेन्द्र विनुताम् श्रृंगार पीठालयाम्
योन्याकारक योनी मुद्रित कराम् नित्याम् नवार्णात्मिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।९।।
लक्ष्मी लक्ष्ण पूर्ण भक्त वरदाम् लीला विनोद स्थिताम्
लाक्षारंजित पाद पद्म युगळाम् ब्रह्मेन्द्र संसेविताम्
लोका लोकित लोक काम जननीम् लोकाश्रयांकस्थिताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१०।।
ह्रींकाराश्रित शंकर प्रियतनुं श्री योग पीठेश्वरीम्
मांगल्यायुध पंकजाभ नयनाम् मांगल्य सिद्धि प्रदाम्
कारुण्येन विशेषितांग सुमहा लावण्य सं शोभिताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।११।।
सर्वज्ञान कलावतीं सकरुणाम् सर्वेश्वरीम् सर्वगाम्
सत्याम् सर्वमयीं सहस्त्र दलजाम् सत्वार्णवोपस्थिताम्
संगा संग विवर्जिताम् सुख करीम् बालार्क कोटी प्रभाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१२।।
आधिक्षान्त सुवर्ण बिंदु सुतनुम् सर्वांग संशोभिताम्
नानावर्ण विचित्र चित्र चरिताम् चातुर्य चिन्तामणीम्
चित्रानन्द विधायिनीम् सुचफलाम् कूटत्रया कारिणीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१३।।
लक्ष्मीशान विधीन्द्र चन्द्र मकुटाध्यश्टाङग पीठाश्रिताम्
सूर्यैंदुवग्निमयैक पीठ निलयाम् त्रिस्थाम त्रिकोणेश्वरीम्
गोप्त्त्रीम् गर्वीनिगर्विताम् ककनगाम् गंगा गणेश प्रियाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१४।।
ह्रीम् कूटत्रय रूपिणीम् समयनीम् संसारिणीम् हंसिनीम्
वामाचार परायिणीम् सुकुलजाम् बीजावतीम् मुद्रिणीम्
कामाक्षिम् करुणार्द्र चित्त सहिताम् श्रीं श्रीं त्रिमूर्त्रैंबिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१५।।
या विंध्या शिव केशवादि जननी या वै जगन्मोहिनीं
या ब्रह्मादी पिपीली कान्त जगदानन्दायैक सन्धायिनी
या पञ्चप्रणवत्युरेप नलिनी या चित्कला मालिनीं
सा पायात् पर देवता भगवतीं श्री राजराजेश्वरीम्।।१६।।
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कल्याणा यत पूर्ण चन्द्र वदनाम् प्राणेश्वरानन्दिनीम्
पूर्णा पूर्णतराम् परेष महीशीम् पूर्णमृतास्वादिनीम्
संपूर्णाम् परमोत्तमांमृत कलाम् विध्यावतिम् भारतीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१।।
एकारादि समस्त वर्ण विविधाकारैक चित्रूपीणीम्
चैतन्यात्मक चक्र राज निलयाम् चक्रांत संचारिणीम्
भावा भाव विभाविनीम् भव पराम् सद्भक्ति चिन्तामणीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।२।।
ईशा धृक् पर योग बृंद विविताम् स्वानंद भूताम् पराम्
पश्यन्तिं तनु मध्यमाम् विलसिनीम् श्री वैखरी रूपिणीम्
आत्मानात्म विचारिणीम् विवरगाम् विध्याम् त्रिबीजात्मिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।३।।
लक्ष्यालक्ष्य निरीक्षणाम् निरुपमाम् रुद्राक्ष माला धराम्
त्र्यक्षार्थ कृति दक्ष वंश कलिकाम् दीर्घाक्षी दीर्घ स्वराम्
भद्राम भद्र वर प्रदाम् भगवतीम् भद्रेश्वरीम् मुद्रीणीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।४।।
ह्रीम् बीजागत नाद बिंदु भरिताम् ओँकारनादात्मिकाम्
ब्रह्मानन्द घनोधरीम् गुणवतीम् ज्ञानेश्वरीम् ज्ञानदाम्
इच्छाज्ञान कृतीम् महीम् गतवतीम् गंधर्व संसेविताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।५।।
हर्षोन्मत्त सुवर्ण पात्र भरिताम् पीनोन्ताम् घोर्निताम्
हूंकार प्रिय शब्द जाल निरताम् सारस्वतोल्लासिनीम्
सारासार विचार चारु चरिताम् वर्णाश्रमा कारिणीम्
श्रीचक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।६।।
सर्वेशांग विहारिणीम् सकरुणाम् सन्नाधिनीम् नादीनीम्
संयोग प्रिय रूपिणीम् प्रियवतीम् प्रीताम् प्रतापोन्नताम्
सर्वांतर्गत शालिनीम् शिव तनु संदीपिनीम् दीपिनीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।७।।
कर्मा कर्म विवर्जिताम् कुलवतीम् कर्म प्रदां कौलिनीम्
कारुण्याम् भुवि सर्व काम निरताम् सिंधु प्रियोल्लास्सिनीम्
पञ्च ब्रह्म सनातना सनगताम् गेयाम् सुयोगान्विताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।८।।
हस्त्युतकुम्भ निभस्तनद्वितयथ: पीन्नोन तादानभान्
हाराध्याभरणाम् नरेन्द्र विनुताम् श्रृंगार पीठालयाम्
योन्याकारक योनी मुद्रित कराम् नित्याम् नवार्णात्मिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।९।।
लक्ष्मी लक्ष्ण पूर्ण भक्त वरदाम् लीला विनोद स्थिताम्
लाक्षारंजित पाद पद्म युगळाम् ब्रह्मेन्द्र संसेविताम्
लोका लोकित लोक काम जननीम् लोकाश्रयांकस्थिताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१०।।
ह्रींकाराश्रित शंकर प्रियतनुं श्री योग पीठेश्वरीम्
मांगल्यायुध पंकजाभ नयनाम् मांगल्य सिद्धि प्रदाम्
कारुण्येन विशेषितांग सुमहा लावण्य सं शोभिताम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।११।।
सर्वज्ञान कलावतीं सकरुणाम् सर्वेश्वरीम् सर्वगाम्
सत्याम् सर्वमयीं सहस्त्र दलजाम् सत्वार्णवोपस्थिताम्
संगा संग विवर्जिताम् सुख करीम् बालार्क कोटी प्रभाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१२।।
आधिक्षान्त सुवर्ण बिंदु सुतनुम् सर्वांग संशोभिताम्
नानावर्ण विचित्र चित्र चरिताम् चातुर्य चिन्तामणीम्
चित्रानन्द विधायिनीम् सुचफलाम् कूटत्रया कारिणीम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१३।।
लक्ष्मीशान विधीन्द्र चन्द्र मकुटाध्यश्टाङग पीठाश्रिताम्
सूर्यैंदुवग्निमयैक पीठ निलयाम् त्रिस्थाम त्रिकोणेश्वरीम्
गोप्त्त्रीम् गर्वीनिगर्विताम् ककनगाम् गंगा गणेश प्रियाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१४।।
ह्रीम् कूटत्रय रूपिणीम् समयनीम् संसारिणीम् हंसिनीम्
वामाचार परायिणीम् सुकुलजाम् बीजावतीम् मुद्रिणीम्
कामाक्षिम् करुणार्द्र चित्त सहिताम् श्रीं श्रीं त्रिमूर्त्रैंबिकाम्
श्री चक्र प्रिय बिंदु तर्पण पराम् श्री राजराजेश्वरीम् ।।१५।।
या विंध्या शिव केशवादि जननी या वै जगन्मोहिनीं
या ब्रह्मादी पिपीली कान्त जगदानन्दायैक सन्धायिनी
या पञ्चप्रणवत्युरेप नलिनी या चित्कला मालिनीं
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